Aheli Poddar

Undergrad in Electrical Engineering [at] IEM Kolkata




तलाश


ख्वाबों से सवालों तक


December 25, 2024

कुछ सफ़र बाहर की तलाश से शुरू होते हैं,
लेकिन रास्ते में हमें एहसास होता है कि असल तलाश भीतर की है।
ये कविता मेरी उन्हीं जर्नी के कुछ रंग समेटे है।

घर की तलाश में घर से निकलती हूँ,
हर मोड़ पे एक नई राह में ढलती हूँ।
जहाँ सोचती हूँ कि मंज़िल क़रीब है,
वहीं ख़्वाबों के चाँद पर बादल सा छा जाता है।

किसी गली के कोने में एक सुर सा लगता है,
पर दिल के ज़ख़्मों का शोर भी भटकता है।
जो शहर कभी आशियाँ था मेरे लिए,
वही शहर अजनबी सा लगता है मुझे।

हर दरवाज़ा खटखटाती हूँ, एक सन्नाटा बोलता है,
दिल में चिराग़ जलाती हूँ, अंधेरा फिर दोस्तों सा लगता है।
मैं घर के अरमानों को नए रूप में समझती हूँ,
शायद तलाश एक मकान की नहीं, अपने उजालों की है।

कहीं एक पल के ठहराव में घर मिल जाएगा,
शायद ढूँढते-ढूँढते खुद का पता मिल जाएगा।
तब तक तलाश के रंगों में रंग जाती हूँ,
हर राह पर अपने होने का नया सुर पाती हूँ।

शब्दों में ढलती मेरी यह तलाश अभी जारी है।
हर मोड़ पर कुछ नया पाने और खुद को थोड़ा और समझने की कोशिश...
— अहेली


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